इंदिरा गांधी के इन फैसलो को आज भी याद करता है देश

भारतीय राजनीति के इतिहास में इंदिरा गांधी को उनके दमदार फैसलों के लिए याद किया जाता है। इंदिरा गांधी को तेज तर्रार, त्‍वरित निर्णायक क्षमता और उनकी लोकप्रियता ने दुनिया की सबसे ताकतवर नेताओं में शुमार कर दिया। इंदिरा गांधी ने तीन ऐसे काम किए जिसके लिए उनको देश हमेशा याद करता रहेगा।

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आईए जानते हैं इंदिरा गांधी के फैसले….

बैंकों का राष्ट्रीयकरण 

1969 में प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश के 14 निजी बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया। उस समय कांग्रेस में दो गुट थे इंडिकेट और सिंडिकेट। इंडिकेट की नेता इंदिरा गांधी थीं। सिंडिकेट के लीडर थे के. कामराज। इंदिरा गांधी पर सिंडिकेट का दबाव बढ़ रहा था। सिंडिकेट को निजी बैंकों के पूंजीतंत्र का प्रश्रय था। इंदिरा गांधी का कहना था कि बैंकों के राष्ट्रीयकरण की बदौलत ही देश भर में बैंक क्रेडिट दी जा सकेगी। उस वक्त मोरारजी देसाई वित्त मंत्री थे। 19 जुलाई 1969 को एक अध्यादेश लाया गया और 14 बैंकों का स्वामित्व राज्य के हवाले कर दिया गया। उस वक्त इन बैंकों के पास देश की 70 प्रतिशत जमापूंजी थी। राष्ट्रीयकरण के बाद बैंकों की 40 प्रतिशत पूंजी को प्राइमरी सेक्टर जैसे कृषि और मध्यम एवं छोटे उद्योगों) में निवेश के लिए रखा गया था। देश भर के ग्रामीण क्षेत्रों में बैंक की शाखाएं खुल गईं। 1969 में 8261 शाखाएं थीं। 2000 तक 65521 शाखाएं हो गई। 1980 में छह और बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। हालांकि 2000 के बाद यह प्रक्रिया धीमी पड़ गई।

राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स की समाप्ति 

23 जून 1967 को ऑल इंडिया कांग्रेस ने प्रिवीपर्स की समाप्ति का प्रस्ताव पारित किया। 1970 में संविधान में चौबीसवां संशोधन किया गया और लोकसभा में 332-154 वोट से पारित करवा लिया। हालांकि राज्य सभा में यह प्रस्ताव 149-75 से पराजित हो गया। राज्यसभा में हारने के बाद प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राष्ट्रपति वीवी गिरी से सारे राजे-महाराजाओंं की मान्यता समाप्त करने को कहा।

मान्यता समाप्ति के इस अध्यादेश को ननीभाई पालखीवाला ने  सुप्रीमकोर्ट में सफलतापूर्वक चुनौती भी दी। इस बीच 1971 के चुनाव हो गए और इंदिरा गांधी को जबर्दस्त सफलता मिली। उन्होंने संविधान में संशोधन कराया और प्रिवीपर्स की समाप्ति कर दी। इस तरह राजा-महाराजाओं के सारे अधिकार और सहूलियतें वापस ले ली गईं।

हर राजा-महाराजा को अपनी रियासत का भारत में एकीकरण करने के एवज में उनके सालाना राजस्व की 8.5 प्रतिशत राशि भारत सरकार द्वारा हर साल देना बांध दिया गया था। यह समझौता सरदार पटेल द्वारा देसी रियासतों के एकीकरण के समय हुआ था। इस निर्णय के बाद सारे राजा-महाराजा इंदिरा गांधी के खिलाफ हो गए। इंदिरा गांधी ने संसद में कहा कि एक समतावादी समाज की स्थापना के लिए प्रिवीपर्स और विशेष दर्जा जैसे प्रावधान बाधक थे। इस निर्णय से देश में सामंतवादी प्रवृत्तियों के शमन में मदद मिली और लोकतंत्र मजबूत हुआ

बांगलादेश का उदय 

आजादी के पहले अंग्रेज बंगाल का धार्मिक विभाजन कर गए थे। पूर्वी पाकिस्तान की जनता पाकिस्तान की सेना के शासन में घुटन महसूस कर रही थी। उनके पास नागरिक अधिकार नहीं थे। शेख मुजीबुर रहमान की अगुआई में मुक्ति वाहिनी ने पाकिस्तान की सेना से गृहयुद्ध शुरू कर दिया। नतीजतन भारत के असम में करीब 10 लाख बांगला शरणार्थी पहुंच गए, जिनसे देश में आंतरिक और आर्थिक संकट पैदा हो गया।

भारत बांग्ला देश के स्वाधीनता आंदोलन को रेडिकल मानता था और मुक्ति वाहिनी को संगठित करने के लिए उसने अपनी फौज भेजना शुरू कर दिया था। 1971 तक हमारी सेना वहां पहुंच गई। पश्चिमी पाकिस्तान के हुक्मरानों को यह लगने लगा था कि भारतीय सेना की मदद से पूर्वी पाकिस्तान में उनकी हार सुनिश्चित है।

भारतीय सेना द्वारा बांगलादेश में कार्रवाई करने से पहले ही पाकिस्तान की हवाई सेना ने भारतीय एयर बेस पर हमले शुरू कर दिए। भारत की सेना को हमलों की भनक लग चुकी थी। हमले भारतीय वायुसेना ने निष्फल कर दिए। इसी के साथ 1971 का दूसरा भारत-पाकिस्तान युद्ध शुरू हो गया। पाकिस्तान कमजोर पड़ने लगा तो संयुक्त राष्ट्रसंघ में पहुंच गया और युद्ध विराम के लिए हस्तक्षेप करने की अपील की।

7 दिसंबर को अमेरिका ने प्रस्ताव पारित करते हुए तुरंत युद्ध विराम लागू करने के लिए कहा जिस पर स्टालिन शासित रूस ने वीटो कर लिया। रूस का मानना था कि भारतीय सेना की यह कार्रवाई पाकिस्तान की सेना के दमन के खिलाफ थी। हिंदुस्तान की सेना ने मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर पाकिस्तान की 90,000 सैनिकों वाली सेना को परास्त कर दिया। 16 दिसंबर को भरातीय सेना ढाका पहुंच गई। पाकिस्तान की फौज को आत्मसमर्पण करना पड़ा।

दूसरे विश्वयुद्ध के बाद किसी भी देश की सेना का यह सबसे बड़ा आत्मसमर्पण था। विश्व के मानचित्र में एक नये देश बांग्लादेश का उदय हुआ, देर सवेर पाकिस्तान के सहयोगी अमेरिका और चीन ने भी बांग्लादेश को मान्यता दे दी।

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