नई सरकार के सामने कृषि संकट होगी एक बड़ी चुनौत, पढ़े पुरी खबर
लोकसभा चुनाव बाद बनने वाली नयी सरकार के सामने ग्रामीण अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की बड़ी चुनौती होगी. खासकर इस साल मॉनसून के सामान्य से कम रहने व देरी से आने की वजह से मुश्किलें बढ़ सकती हैं, जिससे कुछ भागों में सूखे का संकट भी उत्पन्न होने कि सम्भावना है. गत साल देश में उच्च कृषि उत्पादन के बावजूद मांग व आपूर्ति अनुपात में बढ़ते अंतर की वजह से किसानों की कमाई कम हुई. सब्जियों के मुद्दे में, बड़े शहरों में आलू व प्याज के खुदरा दाम जहां 20-30 रुपये प्रति किलोग्राम तक थे, वहीं इसके लिए किसानों को प्रति किलोग्राम एक रुपये मिले.
फसल के दाम में कमी की वजह से किसान सड़कों पर उतर आए. 2018 में अकेले दिल्ली में ही किसानों ने पांच बड़ी रैलियां की. इससे विपक्षी पार्टियों को लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी नीत सरकार के खिलाफ प्रदर्शन करने का मौका मिला. कृषि विशेषज्ञ देवेंद्र शर्मा का बोलना है कि पिछले कुछ समय से कृषि क्षेत्र ‘बहुत बुरी हालत’ में है व इस हालात से बाहर निकलने के लिए तत्काल कदम उठाए जाने की आवश्यकता है.
उन्होंने कहा, “पहले, किसानों के फायदेमंद मूल्य के लिए, कृषि लागत व मूल्य(सीएसीपी) के लिए कृषि आयोग का गठन होना चाहिए. इसके अतिरिक्त लोन के दुष्चक्र से बाहर निकालने के लिए किसानों को दिए जाने वाले मौजूदा 6,000 रुपये प्रतिवर्ष के प्रत्यक्ष आय समर्थन को बढ़ाकर कम से कम 18,000 रुपये प्रति माह करना चाहिए.”
शर्मा ने बोला कि सरकार को कृषि क्षेत्र में सार्वजनिक निवेश की इजाजत दी जानी चाहिए व ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की तर्ज पर ‘इज ऑफ डूइंग फार्मिग’ को भी लाना चाहिए. उन्होंने कहा, “देश में 50 फीसदी से ज्यादा आबादी कृषि पर निर्भर है, जबकि हम जीडीपी का केवल 2-3 फीसदी ही कृषि पर खर्च करते हैं. ‘ईज ऑफ डूइंग फार्मिग’ को स्थापित करने से इस क्षेत्र की मुश्किलें कम होंगी, जिससे हम 80 फीसदी तक कृषि संकट का हल निकाल पाएंगे.”
विशेषज्ञों ने पिछले साल बोला था कि 2014 में मुख्यत: किसानों की आय दोगुनी करने का चुनावी वादा करके सत्ता में आई बीजेपी को 2019 के चुनाव में कृषि संकट के मामले पर मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा. हालांकि बालाकोट हवाई हमले ने इस सोच को बदल दिया.
स्वराज इंडिया के योगेन्द्र यादव ने कहा, “दो बड़े मामले हैं -बरोजगारी व कृषि संकट. हालांकि वे (मोदी सरकार) बालाकोट हवाई हमले के बाद इससे बच निकलने में सफल रहे.” उन्होंने कहा, “इन मुद्दों को निश्चित ही दरकिनार कर दिया गया व जैसा लोगों ने सोचा था यह जरूरी मामला नहीं बन पाया.” यादव ने कहा, “बीते साल देश के एक-तिहाई हिस्सों में सूखे जैसी स्थिति थी व इस साल मॉनसून ज्यादा अच्छा होने का अनुमान नहीं होने से कृषि संकट व बढ़ सकता है.” उन्होंने कहा, “अगर मॉनसून सामान्य से कम रहता है तो नयी सरकार को तत्काल इससे निपटने के तरीका सोचने होंगे.“